Shri Tulsi Stotra and Stuti .

तुलसी  मंत्र –
|| ॐ  श्रीं  ह्रीं क्लीं  ऐं  वृंदावन्यै  स्वाहा ||
” नारायणकृतं  तुलसी स्तोत्रम् “
नारायण  ऊवाच –
वृन्दरूपाश्च  वृक्षाश्च यदैकत्र भवन्ति  च।
विदुर्बुधास्तेन  वृन्दां हरिप्रियां भजाम्यहम् ॥
पुरा बभूव या  देवी त्वादौ वृन्दावने  वने।
तेन  वृन्दावनी  ख्याता सौभाग्यां तां  भजाम्यहम् ॥
असंख्येषु च  विश्वेषु पूजिता या  निरंतरम्।
तेन विश्वपूजिताख्यां  पूजितां च  भजाम्यहम् ॥
असंख्यानि च  विश्वानि पवित्राणि त्वया  सदा।
तां  विश्वपावनीं देवी  विरहेण स्मराम्यहम् ॥
देवा न तुष्टाः पुष्पाणां समूहेन यया विना।
तां  पुष्पसारां शुध्दां च  द्रष्टुमिच्छामि  शोकतः ॥
विश्वे  यत्प्राप्तिमात्रेण  भक्तानंदो भवेद् ध्रुवम्।
नन्दिनी  तेन  विख्याता  सा  प्रीता भवतादिह ॥
यस्या देव्यास्तुला नास्ति  विश्वेषु  निखिलेषु च।
तुलसी  तेन  विख्याता  तां  यामि शरणं  प्रियाम् ॥
कृष्णजीवनरूपा  सा शश्वत्प्रियतमा  सती।
तेन  कृष्णजीवनी सा सा  मे  रक्षतुजीवनम् ॥