Jay Ram Rama Ramanam Shamanam

छन्द:

जय राम रमारमणं समनं | भव ताप भयाकुल पाहि जनं ||
अवधेस सुरेस रमेस विभो | सरनागत मागत पाहि प्रभो ||१||

दस सीस बिनासन बीस भुजा | कृत दूरी महा माहि भूरी रुजा |
रजनीचर बृंद पतंग रहे | सर पावक तेज प्रचंड दहे ||२||

महि मंडल मंडन चारूतरं | धृत सायक चाप निषंग बरं |
मद मोह महा ममता रजनी | तम पुंज दिवाकर तेज अनी ||३||

मनजात किरात निपात किए | मृग लोग कुभोग सरेन हिए |
हति नाथ अनाथनि पाहि हरे | विषया बन पाँवर भूली परे ||४||

बाहु रोग बियोगन्हि लोग हए |भवदंध्री निरादर के फल ए |
भव सिंधु अगाध परे नर ते | पद पंकज प्रेम न जे करते ||५||

अति दीन मलीन दुखी नितहीँ | जिन्ह के पद पंकज प्रीती नहीं |
अवलंब भवंत कथा जिन्ह कें | प्रिय संत अनंत सदा तिन्ह कें ||६||

नहीं राग न लोभ न मान मदा | तिन्ह कें सम वैभव वा विपदा |
एहि ते तव सेवक होत मुदा | मुनि त्यागत जोग भरोस सदा ||७||

करि प्रेम निरंतर नेम लिएँ |पद पंकज सेवत सुद्ध हिएँ |
सम मानी निरादर आदरही | सब संत सुखी बिचरंति महि ||८||

मुनि मानस पंकज भृंग भजे | रघुवीर महा रनधीर अजे |
तव नाम जपामि नमामि हरी | भव रोग महागद मान अरी ||९||

गुन सील कृपा परमायतनं | प्रनमामि निरंतर श्रीरमणं |
रघुनंदन निकंदय द्वन्दधनं | महि पाल बिलोकय दीन जनं ||१०||

दोहा:

बार बार बर मांगऊ हारिशी देहु श्रीरंग |
पदसरोज अनपायनी भागती सदा सतसंग ||
बरनी उमापति राम गुन हरषि गए कैलास |
तब प्रभु कपिन्ह दिवाए सब बिधि सुखप्रद बास||